मंगलवार, 28 मई 2013
गुरुवार, 19 अप्रैल 2012
पहली मुलाकात
हर लम्हा यूं ही लंबा होता जाता था
मिलन की आस मुझे थी लेकिन
मै यूं ही हर पल चलता जाता था
तेरे मिलन की आस मुझे हर पल
दूर किरण एक आशा की दिखलाती थी
भान मुझे था की तुम कैसी हो ..
भोली भाली और थोड़ी इठलाती सी
प्यार ढेरों होगा तेरे दिल में और
अभिव्यक्ति होगी तेरे मुखड़े पर
नहीं भूलेगा वो पल
हाँ नहीं भूलेगा वो एक पल मुझे
जब तुमसे मेरी नज़र मिली
तेरी नज़रों में उमड़ता
वो मेरे लिए ढेरों प्यार मिला
तेरी आँखों में वो हीरे सी चमक
तेरी वो हर पल मुझे लुभाती मुस्कुराहट
वो तेरी जुल्फों का तेरे गालों पर गिरना
और वो तेरा नटखट सा खिलखिलाना
तेरी हर एक साँस और
दिल की हर एक धड़कन .....
मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012
अब रहा नहीं जाता .........
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
रिश्ते -- दिल और दिमाग
रिश्ते हमे चाहे जितने दर्द दे ॥
तब भी हम उन्हें दिल से निभाये जाते है ...
वो तो हमारे दिल में रहते है
जिनसे हम रिश्ते बना लेते है .....
क्योंकि जो रिश्ते दिमाग से निभाने की कोशिश करते है ....
वो हर रिश्ते को निभाने की एक वजह ढूँढा करते है ......
रिश्ते तो एक जज़्बात होते है .....
जो दिल से उठते है और दर्द हो या खुशी ...
दिल में ही बस जाते है .....
रिश्ते तो सिर्फ और सिर्फ दिल से बनते है ...
और दिल से ही निभाये जाते है
शनिवार, 27 नवंबर 2010
बूंदे जो बनती हैं .....
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
ईश्वर की अनमोल नेमत : बेटी
ओ निर्दयी बेरहम इंसान …..
आ देख मुझे भी एक पल
बेटी न होने की टीस होती है कैसी ……
और कैसे वो मुझे चसकती है …
तुने वो कुदरत की सबसे अनमोल नेमत पा कर
पा कर भी ठुकरा दी है …….
मुझे तो उस खुदा ने नहीं बख्शी वो
वो अपनी सुन्दरतम कृती ……..
नही गुलज़ार किया उसने मेरे आँगन को …..
उस कोमलतम कली से …..
मुझे चाहिए वो मधुरतम खिलखिलाहट ……..
हाँ मुझे भी चाहिये ………..
बेटी का भोलापन और …………
और उसका अपने स्वीट पापू से लिपटना ….
मम्मी की डांट से बच कर …..
पापा की गोद में दुबकना ….
गल्लू पर मीठी सी पुच्ची दे कर दौड़ जाना …….
बेटी का इठलाना और ठुमकना …………
उसका शोरूम में टंगी हुई फ्रॉक के लिए मचलना ….
चमकते हुए गोटे वाला लहंगा पहन कर ….
शादी में फुदकना और डांस करना ………
उसका सारे घर में वो मटकना और चहकना …….
और फिर प्यार से बुलाना "मेले पापा" "पाले पापा"
मुझे तो यह सब कुछ नहीं मिला रे ओ इंसान
काश की तू मेरी हसी उड़ा कर ही कुछ सीख ले
बेटी, जो तेरी अमूल्य निधि है उसको सहेज ले
बुधवार, 25 नवंबर 2009
तुम यूं आ गयी हो ........
जिन्दगी मुस्कुराने लगी है ……………
यूं ही तुम्हारा खिलखिलाना ………..
और खिलखिला कर मुझे आवाज़ देना ………
मुझे चकित कर देता है और उर्जावान भी ……..
फिर एक बार इंतज़ार होता है तुम्हारे खिलखिलाने का ……
तेरी शोखी और तेरा वो शिशु सा मचलना ….
और मचल कर फिर मुझे आवाज़ देना ………
मुझे यूं आल्हादित कर देता है और धनवान भी …..
फिर एक बार इंतज़ार होता है तेरी आवाज़ का …
किसी ने पुछा धनवान ?????
मैंने इतराते हुए कहा हाँ धनवान …..
बताओ जरा ………. ??
कोई कितने भी धन से क्या पा सकता है
वो मुस्कराहट, वो खिलखिलाहट तेरी
वो शोखी, वो मचलना तेरा
मन तो होता है तुझको बाहों में कस लू
कस के बाहों मे तुझको
एक स्पर्श दूं अपने अधरों का ………
तू अपने कापते अधरों को बस यूं ही रहने दे …
और अपनी पलकों को मूँद कर …………
मौन स्वीकृति दे दे मेरे स्पर्श को …..
लेकिन फिर सोचता हूँ की ………
कही में लोभी तो नहीं हो गया हूँ …..
हाँ शायद ऐसा ही है …….
मै नहीं खोना चाहता हूँ ….
वो तेरी मुस्कराहट का आनंद .…
वो तेरी खिलखिलाहट का जादू …………
वो तेरी शोखी का रस …….
तुम यूं आ गयी हो ………
जिन्दगी मुस्कुराने लगी है ……………