बुधवार, 25 नवंबर 2009

तुम यूं आ गयी हो ........






तुम यूं आ गयी हो ……….
जिन्दगी मुस्कुराने लगी है ……………

यूं ही तुम्हारा खिलखिलाना ………..
और खिलखिला कर मुझे आवाज़ देना ………
मुझे चकित कर देता है और उर्जावान भी ……..
फिर एक बार इंतज़ार होता है तुम्हारे खिलखिलाने का ……

तेरी शोखी और तेरा वो शिशु सा मचलना ….
और मचल कर फिर मुझे आवाज़ देना ………
मुझे यूं आल्हादित कर देता है और धनवान भी …..
फिर एक बार इंतज़ार होता है तेरी आवाज़ का …

किसी ने पुछा धनवान ?????
मैंने इतराते हुए कहा हाँ धनवान …..
बताओ जरा ………. ??
कोई कितने भी धन से क्या पा सकता है
वो मुस्कराहट, वो खिलखिलाहट तेरी
वो शोखी, वो मचलना तेरा

मन तो होता है तुझको बाहों में कस लू
कस के बाहों मे तुझको
एक स्पर्श दूं अपने अधरों का ………
तू अपने कापते अधरों को बस यूं ही रहने दे …
और अपनी पलकों को मूँद कर …………
मौन स्वीकृति दे दे मेरे स्पर्श को …..

लेकिन फिर सोचता हूँ की ………
कही में लोभी तो नहीं हो गया हूँ …..
हाँ शायद ऐसा ही है …….

मै नहीं खोना चाहता हूँ ….
वो तेरी मुस्कराहट का आनंद .…
वो तेरी खिलखिलाहट का जादू …………
वो तेरी शोखी का रस …….

तुम यूं आ गयी हो ………
जिन्दगी मुस्कुराने लगी है ……………